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Kisan ki Baat: मसूर दाल पर 11% आयात शुल्क, पीली मटर का ड्यूटी-फ्री आयात 31 मई तक बढ़ा

भारत सरकार ने दलहन आयात को लेकर दो महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। वित्त मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार, मसूर दाल पर 11 प्रतिशत आयात शुल्क लगाया गया है, जबकि पीली मटर के शुल्क-मुक्त आयात को 31 मई, 2025 तक बढ़ा दिया गया है।

By: Dipti Tiwari 
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Kisan ki Baat: मसूर दाल पर 11% आयात शुल्क, पीली मटर का ड्यूटी-फ्री आयात 31 मई तक बढ़ा

भारत सरकार ने दलहन आयात को लेकर दो महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। वित्त मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार, मसूर दाल पर 11 प्रतिशत आयात शुल्क लगाया गया है, जबकि पीली मटर के शुल्क-मुक्त आयात को 31 मई, 2025 तक बढ़ा दिया गया है। सरकार के इस फैसले का असर घरेलू बाजार, किसानों और उपभोक्ताओं पर सीधा पड़ेगा।

मसूर दाल पर शुल्क लगाने का उद्देश्य

8 मार्च, 2025 से सरकार ने मसूर दाल के आयात पर 5 प्रतिशत मूल सीमा शुल्क (BCD), 5 प्रतिशत कृषि अवसंरचना विकास उपकर (AIDC) और 1 प्रतिशत समाज कल्याण प्रभार (SWC) लागू कर दिया है। इससे पहले मसूर दाल का आयात पूरी तरह से शुल्क-मुक्त था। यह कदम घरेलू किसानों को सस्ते आयात से होने वाले नुकसान से बचाने और उनके उत्पाद का उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है।

पीली मटर के ड्यूटी-फ्री आयात का विस्तार

पीली मटर के ड्यूटी-फ्री आयात की अनुमति सरकार ने दिसंबर 2023 में दी थी, जिसे समय-समय पर बढ़ाते हुए अब 31 मई, 2025 तक कर दिया गया है। भारत में आयात होने वाली कुल दालों में पीली मटर की हिस्सेदारी लगभग 50 प्रतिशत है। सरकार ने 2023 में दालों की महंगाई पर नियंत्रण रखने के लिए कई दालों को 2025 तक शुल्क-मुक्त आयात की अनुमति दी थी।

नीति में बदलाव और संभावित प्रभाव

2017 में सरकार ने घरेलू दलहन उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए पीली मटर के आयात पर 50 प्रतिशत शुल्क लगाया था, लेकिन 2023 में इस नीति में बदलाव कर इसे शुल्क-मुक्त कर दिया गया। चूंकि पीली मटर की कीमत अन्य दालों की तुलना में कम होती है, इसलिए इसे आमतौर पर चने की जगह इस्तेमाल किया जाता है। अब, पीली मटर का शुल्क-मुक्त आयात जारी रखने से चने की कीमतों पर और अधिक दबाव बनने की संभावना है।

चने की कीमतों पर असर

विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार के इस निर्णय से चने की कीमतें और अधिक गिर सकती हैं। वर्तमान में रबी सीजन की नई फसल मंडियों में आनी शुरू हो गई है और चने की कीमतें कई जगहों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से नीचे जा रही हैं।

वर्ष 2024-25 के दौरान चने की बुवाई का रकबा बढ़कर 98.55 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जो पिछले साल 95.87 लाख हेक्टेयर था। चने के बेहतर उत्पादन की संभावना के बावजूद, बाजार में इसकी कीमत 5650 रुपये प्रति क्विंटल के MSP से नीचे जाने लगी है। इससे किसानों को उनकी फसल का सही दाम नहीं मिल पा रहा है।

क्या होगा दलहन किसानों पर प्रभाव?

भारत विश्व में दलहन उत्पादन का सबसे बड़ा देश होने के बावजूद हर साल अपनी जरूरत का 15-20 प्रतिशत यानी करीब 60-70 लाख टन दालों का आयात करता है। सरकार का मसूर दाल पर 11 प्रतिशत आयात शुल्क लगाना किसानों के लिए राहत की बात हो सकती है, क्योंकि इससे सस्ते आयात के कारण घरेलू कीमतों में गिरावट पर अंकुश लगेगा। हालांकि, दूसरी ओर, पीली मटर का ड्यूटी-फ्री आयात जारी रहने से दालों में आत्मनिर्भरता लाने और किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य दिलाने की सरकार की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं।

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