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Buffalo Farming: एक लाभकारी व्यवसाय की ओर बढ़ता कदम

आज के समय में पशुपालन एक महत्वपूर्ण व्यवसाय बन चुका है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। यदि आप गांव में परचून की दुकान खोलने की सोच रहे हैं, तो इससे कहीं ज्यादा फायदेमंद एक भैंस पालना हो सकता है। भैंस को ब्लैक गोल्ड कहा जाता है क्योंकि यह किसानों के लिए निरंतर आमदनी का स्रोत बन सकती है।

By: Dipti Tiwari 
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Buffalo Farming: एक लाभकारी व्यवसाय की ओर बढ़ता कदम

आज के समय में पशुपालन एक महत्वपूर्ण व्यवसाय बन चुका है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। यदि आप गांव में परचून की दुकान खोलने की सोच रहे हैं, तो इससे कहीं ज्यादा फायदेमंद एक भैंस पालना हो सकता है। भैंस को ब्लैक गोल्ड कहा जाता है क्योंकि यह किसानों के लिए निरंतर आमदनी का स्रोत बन सकती है।

डेयरी उद्योग में भैंस की बढ़ती महत्ता

सेंट्रल बफैलो रिसर्च इंस्टीट्यूट, हिसार, हरियाणा के पूर्व डायरेक्टर डीके दत्ता का कहना है कि भैंस पालन करने वाला किसान एक चलता-फिरता ATM रखता है। आज सड़कों पर छुट्टा गायें देखने को मिलती हैं, लेकिन कोई भी छुट्टा भैंस नजर नहीं आती। इसका कारण यह है कि भैंस की मांग हमेशा बनी रहती है, चाहे वह दूध उत्पादन के लिए हो या उसके बछड़े के लिए। बिहार के पटना में इंडियन डेयरी एसोसिएशन द्वारा आयोजित 51वीं डेयरी कांफ्रेंस में यह चर्चा सामने आई कि भैंस पालन आर्थिक रूप से अधिक लाभदायक है।

भैंस बनाम गाय: कौन ज्यादा फायदेमंद?

डीके दत्ता के अनुसार, भैंस को गाय की तुलना में ज्यादा फायदेमंद माना जाता है। इसके कई कारण हैं:

1. दूध उत्पादन और मूल्य: भैंस का दूध अधिक गाढ़ा और पौष्टिक होता है, जिसकी कीमत बाजार में गाय के दूध से ज्यादा होती है। इसके अलावा, भैंस के दूध से बने उत्पाद जैसे दही, मक्खन और घी भी उच्च गुणवत्ता के होते हैं, जिससे मुनाफा बढ़ता है।
2. नर और मादा दोनों उपयोगी: गाय के नर बछड़ों की बाजार में ज्यादा मांग नहीं होती, लेकिन भैंस का नर बछड़ा भी अच्छी कीमत में बिकता है। यदि नर को ब्रीडर बनाया जाए, तो वह और अधिक आय का स्रोत बन सकता है।
3. बिक्री और पुनः निवेश: जब गाय दूध देना बंद कर देती है, तो उसे कोई खरीदना नहीं चाहता, जिससे वे सड़कों पर छुट्टा घूमने लगती हैं। जबकि, भैंस दूध देना बंद करने के बाद भी 35 से 40 हजार रुपये तक की कीमत में बिक जाती है।
4. आसान नकदीकरण: जब भी पैसों की जरूरत हो, भैंस को बेचा जा सकता है, जो एक आर्थिक सुरक्षा की तरह काम करता है।

मुर्रा और नीली रावी: बेस्ट ब्रीड्स

भैंस की मुर्रा नस्ल को ब्लैक गोल्ड कहा जाता है क्योंकि यह अधिक दूध देती है और किसानों के लिए अत्यधिक फायदेमंद साबित होती है। लेकिन इसके अलावा नीली रावी नस्ल भी है, जो दूध उत्पादन में मुर्रा से किसी भी तरह कम नहीं है। हालांकि, इसका रंग पूरी तरह काला नहीं होता, जिससे कुछ पशुपालक इसे अपनाने में संकोच करते हैं। लेकिन पंजाब में डेयरी प्रतियोगिताओं में मुर्रा और नीली रावी दोनों नस्लों को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे इसकी उपयोगिता स्पष्ट होती है।

टेक्नोलॉजी अपनाकर बढ़ाएं मुनाफा

भैंस पालन को अधिक लाभकारी बनाने के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग करना आवश्यक है। इसमें दुधारू पशुओं की पहचान, उनके स्वास्थ्य पर नजर रखना और समय पर इलाज कराना जरूरी है। केवल दूध बेचने से मुनाफा नहीं बढ़ेगा, बल्कि दूध से उत्पाद तैयार कर बाजार में बेचना होगा।

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