भारत में कृषि अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च (ICAR) ने पंजाब में हाइब्रिड राइस की कुछ नई किस्में, जैसे Sava 127, Sava 134, और Sava 7501, को खेती के लिए अधिसूचित किया है। ये हाइब्रिड किस्में 67% से अधिक आउट टर्न रेशियो (OTR) प्रदान करती हैं और इनसे बनने वाले टूटे चावल (Broken Rice) की मात्रा मात्र 20-21% है, जो कि फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (FCI) द्वारा निर्धारित मानकों को पूरा करती है।
हाइब्रिड राइस: विज्ञान और तकनीक की मदद से विकसित नई किस्में
हाइब्रिड राइस पारंपरिक चावल की तुलना में एक वैज्ञानिक विधि से तैयार की गई क्रॉस-ब्रीड किस्म होती है। इसे दो जेनेटिकली भिन्न राइस लाइन्स (Genetically Distinct Rice Lines) को मिलाकर विकसित किया जाता है ताकि इसकी उत्पादन क्षमता, जलवायु सहनशीलता और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सके।
पारंपरिक धान की किस्मों के मुकाबले, हाइब्रिड राइस को सूखा, अत्यधिक पानी, और बीमारियों जैसी स्थितियों को सहने के लिए विकसित किया गया है। इसके अलावा, इसकी फसल चक्र अवधि (Crop Cycle Duration) कम होती है, जिससे यह पानी की बचत करता है और किसानों को अधिक उपज प्राप्त करने में मदद करता है।
हाइब्रिड राइस: कृषि संकट के समाधान की उम्मीद
पंजाब में जलस्तर घटने, बढ़ती कृषि मांग, और अधिक उपज की आवश्यकता को देखते हुए हाइब्रिड राइस टेक्नोलॉजी को एक नई उम्मीद के रूप में देखा जा रहा है। हाल ही में, फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री इंडिया (FSII) ने पंजाब राइस मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष को एक पत्र भेजा, जिसमें हाइब्रिड राइस की खेती को बढ़ावा देने की बात कही गई। हालांकि, कुछ किसान और मिलर्स अभी भी हाइब्रिड बीजों की गुणवत्ता और उत्पादन स्थिरता को लेकर आशंकित हैं। लेकिन, कृषि विशेषज्ञों और प्रगतिशील किसानों का मानना है कि यह तकनीक टिकाऊ खेती, किसानों की आय में वृद्धि और जल संरक्षण में मददगार साबित हो सकती है।
जल संरक्षण और उच्च उत्पादन: हाइब्रिड राइस की खासियत
पंजाब में लगातार घटते भूजल स्तर (Groundwater Level) के कारण कृषि में बदलाव की आवश्यकता महसूस की जा रही है। पारंपरिक धान की किस्में अत्यधिक जल-गहन (Water-Intensive) होती हैं, जबकि हाइब्रिड राइस कम समय में 30% तक कम पानी का उपयोग करके 15-20% अधिक उत्पादन दे सकता है।
फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री इंडिया (FSII) के अध्यक्ष अजय राणा के अनुसार, हाइब्रिड राइस के कारण किसानों को प्रति एकड़ 8,000 से 10,000 रुपये की अतिरिक्त आमदनी हो सकती है। इसकी फसल चक्र अवधि छोटी (Short Crop Cycle) होने से किसानों को पराली प्रबंधन (Stubble Management) के लिए भी अधिक समय मिलता है, जिससे फसल अवशेष जलाने की समस्या को कम किया जा सकता है।
पंजाब में हाइब्रिड राइस की मौजूदा स्थिति
फिलहाल, पंजाब में 75 लाख एकड़ कृषि भूमि में धान की खेती की जाती है, लेकिन हाइब्रिड राइस की खेती केवल 3 से 3.5 लाख एकड़ भूमि पर की जा रही है। पंजाब कृषि विभाग के अनुसार, यदि हाइब्रिड राइस की खेती को बढ़ावा दिया जाए, तो बिना अतिरिक्त कृषि भूमि बढ़ाए धान उत्पादन को 12.5 मिलियन टन से भी अधिक किया जा सकता है। हालांकि, इस नई तकनीक को अपनाने में कुछ चुनौतियाँ भी हैं। इसमें दो प्रमुख बाधाएँ सामने आ रही हैं:
1. व्यवहारिक चुनौतियाँ (Practical Barriers): किसानों को गुणवत्तापूर्ण हाइब्रिड बीजों की उपलब्धता, नई तकनीकों पर प्रशिक्षण और सरकारी समर्थन की जरूरत है।
2. धारणा संबंधी चुनौतियाँ (Perception Barriers): कई किसान हाइब्रिड किस्मों को अपनाने से हिचकिचाते हैं, क्योंकि उन्हें इसकी उत्पादन स्थिरता और लागत को लेकर संदेह है।
हाइब्रिड राइस को बढ़ावा देने के लिए सरकार और संस्थानों की भूमिका
हाइब्रिड राइस की खेती को सफल बनाने के लिए सरकार और कृषि संस्थानों का सहयोग महत्वपूर्ण होगा। इसके लिए कुछ आवश्यक कदम उठाए जा सकते हैं:
🔹शिक्षा और जागरूकता अभियान: किसानों को नई किस्मों के फायदों के बारे में प्रशिक्षित करना।
🔹वित्तीय सहायता और सब्सिडी: हाइब्रिड बीजों की खरीद और उन्नत कृषि तकनीकों के लिए सरकारी अनुदान और सब्सिडी प्रदान करना।
🔹बीज वितरण और पोस्ट-हार्वेस्ट इंफ्रास्ट्रक्चर: गुणवत्तापूर्ण बीजों की सुगम आपूर्ति और फसल के सही प्रबंधन के लिए मिलिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार करना।
अन्य राज्यों में हाइब्रिड राइस की सफलता
हाइब्रिड राइस टेक्नोलॉजी ने छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में बेहतर उत्पादन और गुणवत्ता को साबित किया है। इन राज्यों में राइस मिलर्स ने भी हाइब्रिड धान को बेहतर माना है और यहां मिलिंग संबंधी समस्याएं कम देखी गई हैं। यदि पंजाब भी हाइब्रिड राइस खेती को अपनाता है, तो यह धान उत्पादन बढ़ाने, जल संरक्षण और किसानों की आय में वृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।