चने की खेती करने वाले किसानों के लिए अच्छी उपज और बेहतरीन गुणवत्ता प्राप्त करना एक चुनौती हो सकती है, लेकिन सही तकनीकों और सावधानियों को अपनाकर इसे संभव बनाया जा सकता है।
चना एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है, जिसे शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु में उगाया जाता है। इसके उत्पादन को अधिक लाभकारी बनाने के लिए मिट्टी का चयन, बीज उपचार, सही समय पर बुवाई, उर्वरक प्रबंधन, सिंचाई, खरपतवार नियंत्रण और कीट-रोग प्रबंधन जैसी तकनीकों पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। आइए जानते हैं चने की खेती से अधिक उपज और गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए किन महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए।
1. उपयुक्त जलवायु और मिट्टी का चयन
चना ठंडी जलवायु में अच्छी तरह से विकसित होता है, लेकिन पाले (Frost) से इसे बचाना जरूरी होता है। इस फसल के लिए दोमट, काली या बलुई दोमट मिट्टी (Loamy, Black, or Sandy Loam Soil) सबसे उपयुक्त मानी जाती है। साथ ही, मिट्टी का pH स्तर 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए ताकि पौधे को पोषक तत्व आसानी से मिल सकें।
2. बीज का चुनाव और उपचार
अच्छी उपज के लिए गुणवत्तायुक्त और रोगमुक्त बीज (High-Quality and Disease-Free Seeds) का चयन बेहद जरूरी है। बुवाई से पहले बीजों का उपचार जैविक फफूंदनाशक (Bio Fungicide) से करना चाहिए। साथ ही, राइजोबियम कल्चर (Rhizobium Culture) और PSB (Phosphate Solubilizing Bacteria) से बीजोपचार करने से नाइट्रोजन स्थिरीकरण और फॉस्फोरस अवशोषण में सहायता मिलती है, जिससे पौधों की वृद्धि तेज होती है।
3. उचित समय पर बुवाई
चने की बुवाई का सही समय उत्पादन पर सीधा असर डालता है। अक्टूबर के मध्य से नवंबर के पहले सप्ताह तक बुवाई कर देना सबसे अच्छा माना जाता है। देर से बुवाई करने पर फसल को पाले और कीट-रोगों का खतरा बढ़ सकता है, जिससे उपज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
4. बुवाई की विधि और पौधों की उचित दूरी
बुवाई के दौरान बीजों के बीच उचित दूरी (Proper Spacing) बनाए रखना आवश्यक है ताकि पौधों को सही पोषण और विकास के लिए पर्याप्त स्थान मिल सके। चने के पौधों के लिए:
🔹पंक्ति से पंक्ति की दूरी: 30 से 45 सेमी
🔹पौधे से पौधे की दूरी: 10 से 12 सेमी
🔹बुवाई की गहराई: 5 से 7 सेमी
यह दूरी पौधों के उचित विकास और कीट-रोगों के नियंत्रण में मदद करती है।
5. संतुलित उर्वरक प्रबंधन
चना एक दलहनी फसल (Leguminous Crop) होने के कारण नाइट्रोजन को स्थिर करने में सक्षम होता है, फिर भी इसकी अधिक उपज के लिए संतुलित पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। सामान्यतः प्रति हेक्टेयर:
🔹नाइट्रोजन (Nitrogen): 20-25 कि.ग्रा.
🔹फॉस्फोरस (Phosphorus): 40-50 कि.ग्रा.
🔹पोटाश (Potash): 20 कि.ग्रा.
इसके अलावा, सल्फर (Sulfur) चने की गुणवत्ता और उपज बढ़ाने में मदद करता है।
6. सिंचाई का प्रबंधन
चना वर्षा पर निर्भर फसल है, लेकिन बारिश न होने पर जीवन रक्षक सिंचाई (Life-Saving Irrigation) करना जरूरी होता है। खासतौर पर पुष्पन (Flowering) और दाना बनने (Pod Formation) की अवस्था में एक सिंचाई अवश्य करें। अत्यधिक सिंचाई से जड़ सड़न (Root Rot) का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए खेत में अच्छी जल निकासी (Proper Drainage System) की व्यवस्था होनी चाहिए।
7. खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार चने की उपज को कम कर सकते हैं, इसलिए बुवाई के 25-30 दिन बाद निराई-गुड़ाई (Weeding and Hoeing) करना आवश्यक होता है। खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए पेन्डीमेथालिन (Pendimethalin) जैसे खरपतवारनाशक का प्रयोग बुवाई से पहले या तुरंत बाद किया जा सकता है।
8. कीट और रोग प्रबंधन
मुख्य कीट:
🔹फली छेदक (Pod Borer):
🔹ट्राइकोग्रामा कार्ड (Trichogramma Card) या नीम तेल (Neem Oil) का प्रयोग करें।
🔹जरूरत पड़ने पर क्लोरएन्ट्रानिलीप्रोल (Chlorantraniliprole) या इंडोक्साकार्ब (Indoxacarb) का छिड़काव करें।
मुख्य रोग:
🔹उखटा रोग (Wilt Disease) और कॉलर रॉट (Collar Rot) को रोकने के लिए बीजोपचार (Seed Treatment) करें।
🔹रोग प्रतिरोधी किस्में (Disease-Resistant Varieties) अपनाएं।
🔹फसल चक्र (Crop Rotation) अपनाकर मिट्टी में रोगों को कम किया जा सकता है।
9. फसल चक्र अपनाएं
एक ही खेत में बार-बार चना बोने से मिट्टी में रोग और पोषक तत्वों की कमी हो सकती है। इसलिए, चना के बाद मक्का (Maize), ज्वार (Sorghum), बाजरा (Millet), मूंगफली (Groundnut) या गन्ना (Sugarcane) जैसी फसलें बोना लाभदायक रहता है।
10. कटाई और भंडारण
जब चने के पौधे और फली पूरी तरह सूख जाएं और पत्तियां गिरने लगें, तभी फसल की कटाई करनी चाहिए। कटाई के बाद, दानों को अच्छी तरह से सुखाना (Proper Drying of Grains) आवश्यक होता है ताकि नमी 10% से कम रहे। भंडारण के दौरान कीटों से बचाने के लिए नीम की पत्तियां (Neem Leaves) या फॉस्फीन गैस टैबलेट (Phosphine Gas Tablet) का प्रयोग करें।