बकरी पालन (Goat Farming) कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाला व्यवसाय है। पिछले कुछ वर्षों में पशुपालन (Animal Husbandry) का कारोबार तेजी से बढ़ा है, और खासकर बकरी पालन की मांग बढ़ी है। गाय-भैंस की तुलना में बकरी पालन आसान और सस्ता है, क्योंकि इसमें चारे, दवा और रहने की व्यवस्था पर कम खर्च आता है।
यही कारण है कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कई लोग अब बकरी पालन को एक लाभदायक व्यवसाय के रूप में अपना रहे हैं। भारत में 50 से अधिक नस्लों की बकरियां पाई जाती हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही नस्लें व्यवसायिक रूप से अधिक फायदेमंद मानी जाती हैं। इसलिए बकरी पालने वाले किसानों को सही नस्ल का चुनाव करना बेहद जरूरी है ताकि वे अधिक लाभ कमा सकें।
बिहार में बकरी पालन का महत्व
बिहार के ग्रामीण इलाकों में बकरी पालन का एक अलग महत्व है। यह बिना किसी बड़े साधन के भी किया जा सकता है। बकरियां कम पोषण वाली चीजें खाकर भी अच्छा मांस और दूध देती हैं, जिससे किसानों की आमदनी बढ़ती है। बकरी की खाल उद्योगों में इस्तेमाल होती है और इसका मांस पोषण से भरपूर होता है। यही कारण है कि बिहार में बकरी पालन करने वालों की संख्या बढ़ रही है।
सबसे लाभदायक बकरी नस्लें
भारत में कई अच्छी नस्ल की बकरियां पाई जाती हैं, जिनमें जमुनापारी (Jamunapari), बीटल (Beetal), बारबरी (Barbari), कच्छी (Kutchi), उस्मानाबादी (Osmanabadi), ब्लैक बंगाल (Black Bengal), सुरती (Surti), मालवारी (Malabari) और गुजराती (Gujarati) नस्लें मुख्य रूप से शामिल हैं। इनमें से जमुनापारी, बीटल और बारबरी नस्लें दूध, मांस और खाद उत्पादन के लिए सबसे अधिक फायदेमंद मानी जाती हैं। बिहार में खासतौर पर जमुनापारी नस्ल को सबसे अच्छा माना जाता है, क्योंकि यह वहां की जलवायु में अच्छी तरह विकसित होती है।
जमुनापारी नस्ल की विशेषताएं
जमुनापारी नस्ल की बकरियां ऊंची और लंबी होती हैं। इनकी लंबाई 46 से 50 इंच तक होती है और वजन 100 से 140 पाउंड तक हो सकता है। यह नस्ल प्रति दिन 6 लीटर तक दूध देने में सक्षम होती है, जिससे डेयरी व्यवसाय करने वाले किसानों के लिए यह एक लाभदायक विकल्प बन जाती है। हालांकि, बाजार में जमुनापारी नस्ल की बकरियों की संख्या कम है, इसलिए किसानों को जमुनापारी और स्थानीय देसी नस्लों के संकरण (Hybridization) से तैयार संकर (Hybrid) बकरियों को पालने पर जोर देना चाहिए।
बकरी पालन में टीकाकरण का महत्व
बकरी पालन में बीमारियों से बचाव के लिए टीकाकरण (Vaccination) बहुत जरूरी है। पीपीआर (PPR) रोग, जो बकरियों के लिए खतरनाक हो सकता है, से बचाने के लिए सरकार विशेष अभियान चला रही है। बिहार सरकार के पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग द्वारा 25 फरवरी 2025 से मुफ्त टीकाकरण अभियान शुरू किया गया है, जिसमें 4 महीने से अधिक उम्र की बकरियों और भेड़ों को पीपीआर से बचाने के लिए टीका लगाया जा रहा है।
बकरी पालन में देखभाल के महत्वपूर्ण टिप्स
● नवजात बकरी के बच्चे की नाल पर टिंचर आयोडिन लगाना जरूरी होता है।
● बच्चे को दिन में 3-4 बार दूध देना चाहिए।
● यदि मां का दूध उपलब्ध नहीं हो, तो गाय का दूध भी दिया जा सकता है।
● दो से तीन हफ्तों बाद बच्चों को मुलायम हरा चारा खिलाना शुरू करना चाहिए।
● बकरियों की हीट साइकिल (Heat Cycle) 18-21 दिन की होती है, और हीट अवधि (Heat Period) 24-48 घंटे की होती है।
● हीट के लक्षण दिखने के 12 घंटे बाद प्रजनन कराना चाहिए।
● तीन हफ्ते की उम्र में नर बकरी (Male Goat) का बंध्याकरण (Castration) कराना चाहिए। इससे मांस की गुणवत्ता बढ़ती है और उसकी खाल में दुर्गंध नहीं आती।
● जन्म के बाद जेर (Placenta) खुद-ब-खुद गिर जाता है, लेकिन अगर 8-10 घंटे तक जेर नहीं गिरता, तो तुरंत पशु चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए।
● एक बच्चे के जन्म के बाद दूसरे बच्चे के जन्म में 15-20 मिनट का अंतर होता है।
बकरी पालन एक आसान और कम लागत वाला व्यवसाय है, जिसमें किसान अपनी आय को कई गुना बढ़ा सकते हैं। सही नस्ल की बकरियों का चुनाव और उनके उचित देखभाल से यह व्यवसाय अधिक मुनाफा देने वाला बन सकता है। खासकर बिहार जैसे राज्यों में जहां बकरी पालन का अच्छा बाजार है, वहां इस व्यवसाय में अपार संभावनाएं हैं। यदि आप बकरी पालन का व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं, तो बेहतर नस्लों, सही देखभाल और समय पर टीकाकरण का ध्यान रखकर इसे लाभदायक बना सकते हैं।