पानी किसी भी फसल के विकास और उत्पादन में अहम भूमिका निभाता है। लेकिन कई क्षेत्रों में किसानों को खारे या अधिक क्षारीय पानी से सिंचाई करनी पड़ती है, जिससे पैदावार प्रभावित होती है। इस समस्या के समाधान के लिए पानी की जांच, सही फसल चयन और भूमि सुधार तकनीकों का पालन करना आवश्यक है।
खारे पानी के उपयोग से पहले उसकी गुणवत्ता का परीक्षण करना जरूरी है। इसके लिए निम्नलिखित तरीके अपनाएं:
खारे पानी के उपयोग से जमीन में अतिरिक्त लवण जमा हो सकते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता घट सकती है। इसे रोकने के लिए खेतों में उचित जल निकासी प्रणाली अपनानी चाहिए।
सिंचाई के दौरान पानी के समान वितरण के लिए खेत का समतलीकरण आवश्यक है। इससे खारा पानी एक जगह रुककर भूमि की गुणवत्ता खराब नहीं करता।
भारी मिट्टी में पानी के ठहरने की संभावना अधिक होती है, जिससे नमकीनता बढ़ती है। इसलिए खारे पानी का उपयोग हल्की मिट्टी वाले खेतों में करने से बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।
ऐसी फसलें लगानी चाहिए, जो खारे पानी को सहन कर सकें। जैसे:
यदि पानी में सोडियम अधिक है, तो जिप्सम का उपयोग करके उसे संतुलित किया जा सकता है। सिंचाई जल में यदि RSC (Residual Sodium Carbonate) 2.5 ME प्रति लीटर से अधिक हो, तो प्रति एकड़ 1.5 क्विंटल जिप्सम मिलाना फायदेमंद रहेगा।
मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने के लिए प्रति एकड़ 8 टन गोबर की खाद, हरी खाद, या गेहूं की पराली मिलानी चाहिए। इससे मिट्टी में जैविक तत्व बढ़ते हैं और खारे पानी का दुष्प्रभाव कम होता है।
यदि संभव हो, तो मीठे और खारे पानी को मिलाकर सिंचाई करें या फसल के शुरुआती चरण में मीठा पानी और बाद में खारा पानी दें।
गांव के तालाबों का पानी भी पोषक तत्वों से भरपूर होता है, लेकिन इसे प्रयोग में लाने से पहले पानी की गुणवत्ता की जांच अवश्य करवाएं।
खारे पानी से सिंचाई करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन सही तकनीकों और फसल प्रबंधन के द्वारा इसकी हानियों को कम किया जा सकता है। पानी की गुणवत्ता की जांच, भूमि सुधार, सही फसलों का चयन और उचित जल निकासी प्रणाली अपनाकर किसान अपनी पैदावार में सुधार कर सकते हैं।