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समृद्ध किसान, प्राकृतिक कृषि एवं समन्वित कृषि प्रबंधन सबसे महत्त्वपूर्ण घटक

कृषि-खाद्य प्रणाली को स्वस्थ और भरोसेमंद व्यवस्था में बदलने तथा सतत विकास लक्ष्यों को 2030 तक प्राप्त करने के लिए भारत को अब बहुत ही ज्यादा सजकता, सततता और सहनशीलता से अपने प्रयासों को तेज करना होगा।

By: Hindi Desk 
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समृद्ध किसान, प्राकृतिक कृषि एवं समन्वित कृषि प्रबंधन सबसे महत्त्वपूर्ण घटक

कृषि-खाद्य प्रणाली को स्वस्थ और भरोसेमंद व्यवस्था में बदलने तथा सतत विकास लक्ष्यों को 2030 तक प्राप्त करने के लिए भारत को अब बहुत ही ज्यादा सजकता, सततता और सहनशीलता से अपने प्रयासों को तेज करना होगा।

संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के अनुसार वर्ष 2030 तक दुनिया से गरीबी को हटाना है। जबकि विश्व बैंक के मुताबिक दुनिया में करीब 76 करोड़ गरीब हैं जिसमें से 22.4 करोड़ लोग भारत में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं। भारत के 7 राज्यों छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान एवं ओडिशा में लगभग 60 प्रतिशत गरीब आबादी रहती है। और जिनमें से 80 प्रतिशत गांवों में निवास करती है। हाल ही में जारी आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 के अनुसार भारतीय आबादी का एक बड़ा हिस्सा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अन्य क्षेत्रों की तुलना में रोज़गार अवसरों के लिये कृषि क्षेत्र पर अधिक निर्भर है।

दुनिया भर में कृषि उत्पादकों यानी किसानों को दिया जाने वाला मौजूदा समर्थन संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों, पेरिस समझौते के लक्ष्यों और हमारे साझे भविष्य के खिलाफ काम करने वाला है। यह समर्थन पक्षपातपूर्ण है और प्रकृति, पर्यावरण, पोषण और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। यह महिलाओं और छोटे किसानों के हित में भी नहीं है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) में कृषि-खाद्य आर्थिकी के उपनिदेशक मार्को वी सांचेज के अनुसार समर्थन प्रणाली किसानों को उस तरह मदद नहीं पहुंचा रही, जैसे उसे पहुंचाना चाहिए। इससे भी आगे बढ़कर यह सतत विकास के लक्ष्यों और पेरिस समझौते के लक्ष्यों से हमें दूर ले जा रही है।

सरकारों के पास मौका है कि वे खेती का मानवता की भलाई में प्रमुख कारक के तौर पर इस्तेमाल कर सकें और जलवायु परिवर्तन के मौजूदा खतरे से निपटने और पर्यावरण को बचाने में उसका सहयोग लें। प्रकृति के लिए सकारात्मक, समान और बेहतर कृषि समर्थन प्रणाली से ’ हम न सिर्फ लोगों का जीवन सुधार सकते हैं बल्कि उत्सर्जन कम करके अपने पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा कर सकते हैं और कृषि-रसायनों का उपयोग कम कर सकते हैं।

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