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Kheti Wala: बढ़ता तापमान और घटती पैदावार, क्या जलवायु परिवर्तन गेहूं की फसल के लिए खतरा बन रहा है?

जलवायु परिवर्तन का असर अब केवल पर्यावरण तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह कृषि क्षेत्र पर भी गहरा प्रभाव डाल रहा है। खासकर, गेहूं और चावल जैसी मुख्य फसलें इस बदलाव से बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं।

By: Dipti Tiwari 
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Kheti Wala: बढ़ता तापमान और घटती पैदावार, क्या जलवायु परिवर्तन गेहूं की फसल के लिए खतरा बन रहा है?

जलवायु परिवर्तन का असर अब केवल पर्यावरण तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह कृषि क्षेत्र पर भी गहरा प्रभाव डाल रहा है। खासकर, गेहूं और चावल जैसी मुख्य फसलें इस बदलाव से बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2100 तक गेहूं की पैदावार 6 से 25 प्रतिशत तक घट सकती है। इस साल फरवरी में पिछले 124 वर्षों की सबसे अधिक गर्मी दर्ज की गई, जिससे गेहूं की फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका बढ़ गई है।

कैसे प्रभावित हो रही है गेहूं की खेती?

भारत में गेहूं मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश में उगाया जाता है। यह ठंडे मौसम की फसल है, जिसकी बुआई अक्टूबर से दिसंबर के बीच होती है और कटाई फरवरी से अप्रैल में होती है। लेकिन बढ़ती गर्मी और लू की वजह से गेहूं की उपज पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।

मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि इस साल मार्च में सामान्य से अधिक गर्मी पड़ सकती है, जिससे फसल पकने की प्रक्रिया प्रभावित होगी और अनाज की गुणवत्ता खराब हो सकती है।

सरकार की रणनीति और गेहूं की खरीद नीति

भारत सरकार ने 2025-26 के लिए गेहूं की खरीद का लक्ष्य 31 मिलियन टन तय किया है। जबकि 2024-25 में 26.6 मिलियन टन गेहूं खरीदा गया था, जो सरकार के 34.15 मिलियन टन के लक्ष्य से काफी कम था।

मई 2022 में भारत ने गेहूं निर्यात पर रोक लगा दी थी, क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक बाजार में गेहूं की भारी कमी हो गई थी। इस फैसले का उद्देश्य देश में खाद्य सुरक्षा बनाए रखना था।

क्या भविष्य में और घटेगी पैदावार?

नेशनल इनोवेशन इन क्लाइमेट रेसिलिएंट एग्रीकल्चर (NICRA) की रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन की वजह से 2050 तक चावल की पैदावार 7 प्रतिशत और 2080 तक 10 प्रतिशत तक घटने का अनुमान है। भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और मौसम विभाग के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के चलते चावल और गेहूं की पैदावार में 6 से 10 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है।

गर्मी से गेहूं की फसल को कैसे नुकसान होता है?

1. तापमान वृद्धि से गेहूं की वृद्धि दर कम होती है

  • गर्मी बढ़ने से गेहूं के पौधे की वृद्धि दर कम हो जाती है।
  • बीज सही ढंग से अंकुरित नहीं होते
  • पत्तियां जल्दी मुरझा जाती हैं
  • पौधों की जड़ों और तनों की वृद्धि रुक जाती है

2. पौधों के जैविक बदलाव

  • अत्यधिक तापमान गेहूं के प्रोटीन, झिल्ली (मेम्ब्रेन) और कोशिकीय संरचना को प्रभावित करता है।
  • गेहूं के दाने सिकुड़ जाते हैं
  • फसल में अनाज बनने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है
  • क्वालिटी और पोषण मूल्य में कमी आती है

गर्मी का सीधा और अप्रत्यक्ष प्रभाव

सीधा प्रभाव:

  • फसल के अंदर प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों की मात्रा घट जाती है
  • फसल की झिल्ली कमजोर हो जाती है

अप्रत्यक्ष प्रभाव:

  • पौधे की ग्रोथ रुक जाती है
  • फूल झड़ने लगते हैं, जिससे उत्पादन में गिरावट आती है

जलवायु परिवर्तन के कारण गेहूं उत्पादन के लिए नई चुनौतियां

गर्मी बढ़ने से पश्चिमी विक्षोभ कमजोर हो रहे हैं, जिससे उत्तर-पश्चिम भारत में सर्दियों की बारिश में कमी आ रही है। यह बारिश गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए जरूरी होती है।

क्या हो सकते हैं संभावित समाधान?

1. हीट-रेसिस्टेंट गेहूं की किस्में:वैज्ञानिकों को ऐसे बीज विकसित करने होंगे जो गर्मी सहन कर सकें।
2. आधुनिक सिंचाई तकनीक:ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली से जल की खपत कम करके फसलों को गर्मी से बचाया जा सकता है।
3. एआई और मशीन ।लर्निंग आधारित खेती: एआई आधारित मौसम पूर्वानुमान प्रणाली का उपयोग कर किसान फसल चक्र को सही तरीके से मैनेज कर सकते हैं।
4. कार्बन उत्सर्जन कम करने पर जोर: पर्यावरण अनुकूल नीतियां लागू करके ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने की जरूरत है।

बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में गेहूं उत्पादन के लिए गंभीर संकट उत्पन्न हो सकता है। अगर समय रहते सही कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में खाद्य सुरक्षा एक बड़ी चुनौती बन सकती है। किसानों को उन्नत तकनीकों, जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों और सरकारी सहायता से अपनी खेती की रणनीति बदलनी होगी, ताकि वे जलवायु परिवर्तन के इस प्रभाव से बच सके।

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