किन्नू पंजाब का एक महत्वपूर्ण फल है और पंजाब की खेती आर्थिकता में इसका बहुत बड़ा योगदान है। पर किन्नू की पैदावार और गुणवत्ता तुड़ाई के बाद कांट-छांट पर निर्भर करती है। कांट-छांट का मुख्य कारण पौधे को हवादार और रोशनीदार वाला बनाना है। इसमें अगले साल फल देने वाली कुछ टहनियां और अनावश्यक टहनियों की कटाई की जाती है।
कांट छांट की ज़रूरत- किन्नू से साल दर साल अच्छी पैदावार और गुणवत्ता वाला फल लेने के लिए इसकी कांट-छांट बहुत ज़रूरी है। किन्नू में दो मुख्य फुटाव आते हैं। यह फुटाव बहार (फरवरी-मार्च) और बरसाती (जुलाई -अगस्त) ऋतु में आते हैं। मौसम अनुकूल रहने पर फुटाव 3 से 4 बार भी आ सकता है।
कांट-छांट न करने पर पौधे बहुत घने हो जाते हैं जिस कारण धूप और हवा अंदर तक नहीं पहुंच पाती। इस कारण पौधे की अंदर वाली छतरी में फल नहीं लगता। फल की पैदावार कम हो जाती है और इसकी गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। छतरी के बाहरी फल अंधेरी तूफ़ान और गर्मी के कारण खराब हो जाते हैं। इस कारण किन्नू में हर साल कांट-छांट की ज़रूरी होती है । कांट-छांट से कीट और बीमारी की रोकथाम भी हो जाती है।
कांट-छांट का सही समय- सर्दी के आखिरी या बहार की शुरुआत किन्नू के पौधे की कांट-छांट करने का सबसे अनुकूल समय है। किन्नू की कांट छांट अधिक विकास के समय नहीं करनी चाहिए।
कांट-छांट का ढंग और तरीका- 1 से 2 साल के पौधे में जड़ से निकलने वाले फुटाव को लगातार की लगातार तुड़ाई या कटाई करते रहें। 3 से 4 साल के पौधे की शाखाएं टेडी, सीधी और कंडेदार और ज़मीन के साथ लग रही टहनियों की कटाई कर देनी चाहिए। कई बागवान किन्नू की बहुत सी की कटाई करते हैं पर इसके साथ पौधे की सेहत भी खराब हो जाती है और बहुत सी गुल्लियां बन जाती है । इसलिए उस टहनी की कटाई की जानी चाहिए जो पौधे के आकार से बाहर जाती है या असली टहनी से निकल कर खुराक लेती है।
5 साल के पौधे फल देना शुरू कर देते हैं और जिसमें हर साल विकास होता रहता है। फल हमेशा एक साल की टहनी पर लगता है। इसलिए 5 से 10 साल के पौधे में से पतली, सूखी, बीमारी और अनावश्यक टहनियों की कटाई करनी चाहिए। बीमार सूखी टहनियां काटने से कैंकर रोग और फल गिरने से बचाव होता है। 10 साल के पौधे में छतरी का पूरा विकास हो चुका होता है। इन पौधे में से 10-15% ओर एक साल वाली टहनियों की कटाई करें। इसके साथ पौधे की छतरी के अंदर हवा, धूप जाने का प्रबंध रहता है और पौधे की छतरी के अंदर वाली टहनियों पर भी फल आता है। 20 से 25 साल के बड़े और घने बागों में प्रकति कांट-छांट के अलावा धूप की तरफ 1 से 2 टहनियां काटकर रोशनदान बनाए जा सकते हैं।
अधिक घने (20’×10′) बागों में कटाई का स्तर अधिक रखें। इन बागों में पौधे 10 साल के बाद आपस में मिल जाते हैं जिससे कीट और बीमारियों का विकास होता है। ऐसे बागों में प्रकति कांट-छांट के अलावा पौधे की तंग टहनियों की कटाई 1-1.5 फ़ीट लंबाई तक की जा सकती है। इसके साथ पौधे के अंदर हवा और धूप पहुंच जाती है और कीट और बीमारी का हमला भी कम हो जाता है। पर इस विधि के साथ कटाई के अगले साल कट वाले हर सिरे से बहुत सी टहनियां निकलती है जिसमें से सही टहनियों को छोड़कर बाकि जड़ से ही काट देनी चाहिए।
कई बार एक साल में बहुत फल लगता है जिसके कारण अगले साल पैदावार कम होती है। इस चक्कर को तोड़ने के लिए कम उपज वाले साल में कटाई अधिक की जाए ताकि अगले साल फल बहुत अधिक की बजाए संतुलित मात्रा में आए।