हरियाणा और पंजाब देश के दो सबसे बड़े कृषि उत्पादक राज्य हैं, जो भारत की खाद्य सुरक्षा (Food Security) को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन राज्यों में उच्चतम उत्पादकता (High Productivity) के बावजूद, किसान भारी कर्ज (Debt) में डूबे हुए हैं। कृषि में जबरदस्त वृद्धि होने के बावजूद, किसानों की आर्थिक स्थिति कमजोर बनी हुई है। कई किसान अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ हैं और कुछ तो कर्ज के बोझ से तंग आकर आत्महत्या (Farmer Suicides) तक कर लेते हैं। यह स्थिति भारतीय कृषि प्रणाली (Indian Agricultural System) की विडंबना को दर्शाती है। आइए विस्तार से समझते हैं कि आखिर क्यों हरियाणा और पंजाब के किसान कर्ज के दलदल में फंसे हुए हैं।
नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD) की रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब और हरियाणा के अधिकांश किसान किसी न किसी रूप में कर्ज में डूबे हुए हैं। 2020 में पंजाब के लगभग 80% किसानों पर ₹1.5 लाख करोड़ से अधिक का कृषि कर्ज था, जबकि हरियाणा में 70-75% किसान कर्ज के बोझ तले दबे थे।
हरियाणा और पंजाब की कृषि प्रणाली ने भारत को अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर (Self-Sufficiency) बना दिया है। ये राज्य देश के कुल गेहूं और धान उत्पादन में लगभग दो-तिहाई का योगदान करते हैं। हरित क्रांति (Green Revolution) के बाद इन राज्यों में आधुनिक कृषि तकनीकों (Modern Agricultural Techniques), बेहतर सिंचाई (Irrigation Facilities), और उन्नत बीजों (High Yield Seeds) का उपयोग तेजी से बढ़ा। इससे अनाज की पैदावार कई गुना बढ़ गई, लेकिन किसानों की आर्थिक स्थिति जस की तस बनी रही।
1. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का असंतुलन (MSP Discrepancy)
भारत सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price – MSP) तय करती है, जिससे किसान अपनी उपज को निश्चित मूल्य पर बेच सकें। लेकिन MSP किसानों की वास्तविक उत्पादन लागत (Production Cost) से काफी कम होता है। कृषि मूल्य और लागत आयोग (CACP) दो प्रकार की लागत का निर्धारण करता है:
● C-2 लागत: इसमें भूमि का किराया, कृषि निवेश, मशीनों की लागत और श्रम खर्च शामिल होते हैं।
● A-2 + FL लागत: इसमें बीज, उर्वरक, पानी और किसान परिवार के श्रम की लागत शामिल होती है।
सरकार MSP को A-2 + FL लागत के आधार पर तय करती है, जबकि बाजार में कीमतें C-2 लागत के अनुसार निर्धारित होती हैं। इससे किसानों को 700-1200 रुपये प्रति क्विंटल का नुकसान होता है। यदि MSP को C-2 लागत के आधार पर तय किया जाता, तो 2024 में किसानों को 40,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त लाभ मिल सकता था।
2. बिचौलियों और साहूकारों का शोषण (Exploitation by Middlemen & Moneylenders)
●किसान अक्सर मंडी प्रणाली (Market System) में बिचौलियों (Middlemen) और साहूकारों (Moneylenders) के शोषण का शिकार होते हैं। सरकारी खरीद प्रक्रिया (Government Procurement) सीमित समय तक चलती है, जिसके बाद किसानों को अपनी उपज स्थानीय मंडियों में बेचनी पड़ती है।
●केंद्र सरकार केवल 20-30% फसलों की सरकारी खरीद करती है, जबकि 70-80% फसल बिचौलियों और साहूकारों द्वारा खरीदी जाती है।
●बिचौलिए किसानों से कम कीमत पर फसल खरीदते हैं और सरकारी एजेंसियों को अधिक कीमत पर बेचते हैं।
●इस प्रणाली के कारण किसान हर साल लगभग 15,000 करोड़ रुपये का नुकसान उठाते हैं।
3. तोल-मोल में गड़बड़ी और फर्जी पर्चियां (Weighing Fraud & Fake Receipts)
कई बार आढ़तिए (Commission Agents) किसानों से उनकी फसल कम कीमत पर खरीदकर सरकारी एजेंसियों को अधिक दाम में बेचते हैं। इस प्रक्रिया में किसानों को लगभग 12,000 करोड़ रुपये का वार्षिक नुकसान होता है।
4. बढ़ती आत्महत्या दर (Rising Farmer Suicides)
कर्ज का दबाव बढ़ने से कई किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं। पंजाब में 2000 से 2015 के बीच 16,606 किसानों ने आत्महत्या की। बैंक और साहूकारों से लिए गए कर्ज को चुकाने में असमर्थता उन्हें इस दर्दनाक निर्णय की ओर धकेल देती है।
5. सरकारी योजनाओं का सीमित लाभ (Limited Benefits of Government Schemes)
किसानों की मदद के लिए सरकार कई योजनाएं लाती है, जैसे –
● प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (PM-KISAN)
● किसान क्रेडिट कार्ड (KCC)
● प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)
● फसल विविधीकरण योजना (Crop Diversification Scheme)
हालांकि, इन योजनाओं का लाभ सभी किसानों तक नहीं पहुंचता। किसानों को कागजी कार्यवाही (Documentation) और भ्रष्टाचार (Corruption) के कारण इन योजनाओं का पूरा फायदा नहीं मिलता।
1. कानूनी MSP गारंटी (Legal Guarantee for MSP)
सरकार को MSP की कानूनी गारंटी (Legal MSP) देनी चाहिए, ताकि किसान अपनी फसल को न्यूनतम तय कीमत से कम पर न बेचें। इससे किसानों की आय में सुधार होगा और वे कर्ज के बोझ से मुक्त हो सकते हैं।
2. साहूकारों और बिचौलियों पर सख्त कार्रवाई (Strict Actions Against Middlemen & Moneylenders)
सरकार को बिचौलियों और साहूकारों के शोषण को रोकने के लिए सख्त कानून लागू करने चाहिए। सरकारी खरीद प्रणाली (Procurement System) को पारदर्शी (Transparent) और किसान हितैषी (Farmer-Friendly) बनाना आवश्यक है।
3. प्रभावी कर्ज माफी योजनाएं (Effective Loan Waiver Schemes)
कर्ज माफी योजनाओं (Loan Waiver Schemes) को अधिक प्रभावी और व्यापक बनाना होगा, ताकि इसका लाभ अधिक किसानों को मिल सके। साथ ही, साहूकारों के ऊंचे ब्याज दरों पर रोक लगाई जानी चाहिए।
4. फसल विविधीकरण और वैकल्पिक आय स्रोत (Crop Diversification & Alternative Income Sources)
हरियाणा और पंजाब के किसानों को गेहूं और धान की पारंपरिक खेती के अलावा वैकल्पिक फसलें (Alternative Crops) जैसे तिलहन (Oilseeds), दालें (Pulses), और सब्जियां (Vegetables) उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इससे कृषि आय में वृद्धि होगी और जल संकट (Water Crisis) को भी कम किया जा सकेगा।
5. तकनीकी सहायता और डिजिटल प्लेटफॉर्म (Technical Support & Digital Platforms)
किसानों को बाजार की पारदर्शिता बढ़ाने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म (Digital Marketplaces) जैसे ई-नाम (e-NAM) और अन्य ऑनलाइन व्यापारिक पोर्टल्स (Online Trading Platforms) का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
हम सब को पता है कि हरियाणा और पंजाब के किसान देश के अनाज भंडार को भरने में अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन वे स्वयं आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। उनकी समस्याओं को हल करने के लिए सरकार को नीतिगत सुधार (Policy Reforms), कानूनी MSP गारंटी और साहूकारों के नियंत्रण जैसी योजनाओं को लागू करना होगा। सही कदम उठाए जाएं तो किसान न केवल कर्ज मुक्त हो सकते हैं, बल्कि भारत की कृषि अर्थव्यवस्था (Agricultural Economy) को भी सशक्त बना सकते हैं।